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होली खेले घर आंगन में / अनु जसरोटिया

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होली खेले घर आंगन में
रास रचाता है मधुबन में

सच का दामन और ग़रीबी
क्या क्या ऐब हैं इक र्निधन में

चांद को छु लेने की इच्छा
कैसी चाहत थी बचपन में

इन्सानों की क़द्र न जाने
कितना नशा है काले धन में

तू है मेरा कृष्ण कन्हैया
वास है तेरा हर धड़कन में

चांद सितारे से सजे हैं
मेला लगा हो जैसे गगन में

दूर देश से ख़त आया है
विछुड़े मिलेगें अपने वतन में

हर मज़हब को इसने दुलारा
इतना प्यार है मेेरे वतन में