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रंग जीवन में भरूँगी एक दिन / अनु जसरोटिया

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रंग जीवन में भरूँगी एक दिन
अपनी क़िस्मत ख़ुद लिखूँगी एक दिन

तेरे हर ज़र्रे की ख़ातिर ऐ वतन
रानी झाँसी सी लडूँगी एक दिन

मेरे बाबूल तेरे घर आँगन में मैं
बन के तुलसी फिर उगूँगी एक दिन

मुझ से हर रहगीर पायेगा दिशा
मील का पत्थर बनूँगी एक दिन

मेरे आँगन में भी उतरे वो कभी
चाँदनी से मैं कहूँगी एक दिन

ख़ुद बनाऊँगी मैं अपने रास्ते
अपनी मंज़िल ख़ुद चुनूँगी एक दिन

जो परिन्दे उड़ रहे हैं मेरे साथ
उन से मैं ऊँचा उडूँगी एक दिन

ये भी है तुम तक पहुंचने की सबील
फूल की ख़ुशबू बनूँगी एक दिन