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तुम्हारे ज्ञान के संज्ञान में / संजय तिवारी

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महर्षि वृहदश्व ने
धर्मराज को एक कथा सुनाई थी
जीवन में प्रेम और
प्रेम में जीवन की बात बताई थी
निषध के शासक वीरसेन के पुत्र थे नल
अद्भुत था सौंदर्य और उनका बल
विदर्भ में भीष्मक की कन्या थी दमयंती
जितनी कोमल?उतनी रूपवती
निषध और विदर्भ
अतिशय दूरी का सन्दर्भ
नल -दमयंती ने
कभी एक दूसरे को नहीं देखा
फिर भी बहुत गहरी थी प्रेम की रेखा
स्वयम्बर से दाम्पत्य तक
की कथा निराली है
हंसो ने बड़ी चतुराई से
कराया था मिलन
उपजा था जीवन का स्पंदन
और
देवताओ के छल पर भी भारी
दमयंती अपने प्रेम की आभारी
प्रेम पथिको ने भी
जीवन की राह पा ली
लेकिन सोचो
तुम छोड़ गए थे
मुझे एक महल में
नल ने भी
दमयंती को अकेला छोड़ा था
लेकिन जंगल में
नल जीवन से हारा था
 तुम्हें जीवन के डर ने मारा था
नल का दमयंती को
वन में छोड़ जाना
उसके अतिशय प्रेम का गायन था
तुम्हारा जाना पलायन था
वे फिर मिले
प्रेम जीता था
मेरा जीवन तो वैसे ही रीता था
तुम्हारे ज्ञान के संज्ञान में
तुम्हारे ही इतिहास के
अपठित पृष्ठ खोल रही हूँ
गौतम?
हां? मैं यशोधरा ही बोल रही हूँ।