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जरा और जीवन से न डरते / संजय तिवारी

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तुम्हारा त्याग
 इसलिए भी नहीं है त्याग
क्योकि इसमें
कही नहीं दिखती त्याग की आग
एक त्याग की कथा सुनाती हूँ
बालक ध्रुव से तुम्हारा परिचय कराती हूँ
प्रथम पुरुष मनु के पौत्र
महाराज उत्तानपाद के पुत्र
अत्यंत मधुर
अत्यंत कुशाग्र
केवल पांच वर्ष की आयु
देख ली थी भक्ति की वायु
गृहत्याग वन में चले गए
माता पिता की अनुमति से
करने लगे तप
कोई नहीं था कष्ट
न ही था कोई रोग
उपलब्ध था जीवन का सारा भोग
केवल पिता की गोद प्यारी थी
विमाता की बात भारी थी
माता सुनीति ने दिखाई राह
परम पिता परमेश्वर की गोद की उपजी चाह
कठोर तप से ईश्वर को पिघला लिया
अपने पास बुला लिया
अउत्तानपादि बन गए ग्रहाधार
पा गए परमाकार
सप्तर्षियों के मध्य हो गए विराजमान
बालक ध्रुव का त्याग
उन्हें कर दिया ज्योतिर्मान
 तुम्हें त्याग ही करना था तो ध्रुव की तरह करते
जरा और जीवन से न डरते