भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोला कहाँ ले पुकारी / जगदीश पीयूष
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:40, 28 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश पीयूष |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बोला कहाँ ले पुकारी।
बाटू हंस की सवारी॥
तोहैं हाथ जोरि कब से जोहारी माई जी।
लागा हमरिव अरजिया गोहारी माई जी॥
सुना सूरसती माई॥
दिया हमैं कविताई॥
अही पुतवा तोहार तौ अनारी माई जी।
लागा हमरिव अरजिया गोहारी माई जी॥
भये लरिका जवान।
भवा देसवा महान॥
भरै अंगना अनाज और बखारी माई जी॥
लागा हमरिव अरजिया गोहारी माई जी॥
आवा आवा बीनापानी।
माई शारदा भवानी॥
चढ़ै कविता कै टिकरी सोहारी माई जी॥
लागा हमरिव अरजिया गोहारी माई जी॥