भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गउना बदलिगा हमार / जगदीश पीयूष

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:45, 28 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश पीयूष |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गउना बदलिगा हमार।
अंगना बखरी दुआर॥

भूली मुंशी जी के घरे कै पढ़ाई माई जी।
बदला रस्ता पैंडा ताल औ तलाई माई जी॥

नाहीं जात चकरी।
काँडी मसूर गगरी॥

नाहीं कूदै सिकहर पै बिलाई माई जी।
बदला रस्ता पैंडा ताल और तलाई माई जी॥

बनै नवा नवा घर।
केहू छोट ना जबर॥

करै नई तकनिकिया भलाई माई जी।
बदला रस्ता पैंडा ताल औ तलाई माई जी॥

बाबा खोंखैं खटिया।
नाहीं कटै रतिया॥

करैं अपने जमाना कै बड़ाई माई जी।
बदला रस्ता पैंडा ताल और तलाई माई जी॥