Last modified on 28 फ़रवरी 2019, at 11:18

हमरे लोभु औरु पाप कै / सुशील सिद्धार्थ

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 28 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हमरे लोभु औरु पाप कै
निसानी होइ गवा।
अइसि बेहयाई, पानी
पानी पानी होइ गवा॥

पानी क्यार नारा दइकै मालु काटैं हमरे ग्यानी
ब्वालैं हमरे मूड़े आई दुनियादारी जापेसानी
जौनु लाल बत्ती पावा बदगुमानी होइ गवा॥

तलवा सगरे पाटि पाटि ल्वाग पट्टा लूटि लेति
अपने घर का हालु देखि पानी छत्ता कूटि लेति
जलु बचावै क्यार सपना लन्तरानी होइ गवा॥

आंखि क्यार पानी मरिगा तौ देखाय कइसे पानी
बनिकै आमिा कै मोती जगमगाय कइसे पानी
हमरा चित्तु मानौ सूखि राजधानी होइ गवा॥