Last modified on 28 फ़रवरी 2019, at 11:49

कबहूँ तौ घाम कड़ा है / भारतेन्दु मिश्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:49, 28 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कबहूँ तौ घाम कड़ा है
कबहूँ बीता भरि छाँही
हम तौ सुखान बिरवा हन
अब सुख की चिरई नाँही।

अबकी असाढु जो सूखी
तौ हरहा भूखे मरिहैं
नेता कोरे कगदन पर
नहरी दुइ चारि बनइहैं
ददुआ अब बड़े-बड़ेन पर
है नाटेन कै परछाँही।

जुगु बदलि गवा है कक्कू
सब अपनै रागु अलापैं
कामे काजे मा अब तौ
मेहरी मरदन सँग नाचैं
परिगै है भाँग कुँआ मा
सब झूमैं दै गरबाँही।