घुरु-घुरुर-घुरुर चकिया ब्वालै / भारतेन्दु मिश्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:51, 28 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घुरु-घुरुर-घुरुर चकिया ब्वालै
बूढ़ी ककियनि का जिउ ड्वालै
पिसनहरी पिसना पीसति है।

हरहन कै घंटी बाजि रही
कोउ तड़के बासन माँजि रही
अपनी मेहनति घर का दाना
नित पीसै लल्ली मनमाना

वा गावै सीताहरन
मोर जिउ टीसति है।

सविता की किरनैं फूटि रहीं
कुंता-छंगो सुखु लूटि रहीं
तिकड़म की चालन ते अजान
बिनु ब्याही बिटिया है जवान
सुख-दुख मा घरहेम बैठि
आँखि वा मीसति है।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.