चेतउनी / रामकृष्ण
एँ! हम्मर धरती के अँगना में
अन्हरजोर बिनल, रात के
पुरनखटिआ-
बिछल के बिछले हे?
दूरा से बधार तक
परसगेल डेढ़ पहर दिन
तइओ!
तबे नऽ
बहरसी से किरिन मताएल
धनेसर के सुखिआ-ठेंस गेल।
केतना लाज के बात हल ऊ दिन
जे दिन
अप्पन घर के-सफइ-सुथरइ देखावेला
नेओतलक हल!
मलकीनी बिअहुती झमका के
नेओता खा अएलन हल।
जहिआ परिछएलन हल
तहिए,
ढेरमानी किरिआ आउ सिनेह से
तार देलन हल - बूट निअन
हमर लजाएल देह।
बाकी आझो तक
आझ-बिहान के पूनी
अँटाएल न हे।
जतरा आउ पतरा, हम का मानूँ
रोज मंगर आउ एतवार हो जाहे।
नऽ तऽ
हम इ अन्हरजोर के
एक-एक तन्नी उघार-विधुन के
तरिआनी के चिडाँरी पर
धधका देती।
रोज-रोज के रगड़ा से
कातो
बेस होबऽ हे - एक्के रोज के झगड़ा,
ईसे चाहऽ ही हमहूँ
पूछेला-मलकीनी के मलिकाँव से
एक्के बेर
कि, छहुरीतरके अन्हर चटकी राज
कहिआ तक चलत?
इंजोर के दुपहरिआ
न अँगेजल जाओ, तऽ
भोरके सफेदी में करिखा मिलाके
भित्ती-पक्खा पर ओसाबे के बान, काहे?
नइहर सासुर के उकटापुरान में
टोला-टाटी के दुभकन
घरहट के पंचइती ला
जेवार के गोड़इती
कोई नीमन बात हे का?
जिनगी के दुख-सुख
सिनेह आउ छोह भरल
झूमर-चौहट के गीत निअन
रसगर फूल के गन्ह बाँटऽ
तबे,
बरम्हथान के पिपराही डहुँगी
निअन बच सकऽ हऽ
नऽ त
तोरो, चिंडारी के जारन जइसन
टँूठ बाँगुर बनाके-
लहरा देतन, लोग