भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घोटाला वाला देश बन गेलइ / उमेश बहादुरपुरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:33, 9 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चंदा जेकरा चूमऽ हल गरव करे असमान।
घोटाला वाला देश बन गेलइ अप्पन हिंदुस्तान।।
सत्य आउ अहिंसा के तब पाठ पढ़इलन गाँधी।
कहाँ उड़ा के ले गेल उनखा मउत के निर्मम आँधी।
बना देलक बेदरदी नाथू उनखा तब बेजान। घोटाला ....
मारलक हल नाथू तखने एक बेर महात्मा गाँधी के।
मार रहलइ हें मरलो पर की कहना समाजवादी के।
उनखर आत्मा के कर रहलइ हर पल लहूलुहान।। घोटाला...
बुद्ध महावीर नानक के ई धरती पर की होबऽ हे।
नेताजी आजाद भगत के अरमा देखऽ रोबऽ हे।
आझ के नेता से पूछऽ हथ, इहे ले देलूँ जान।। घोटाला ...