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ज़िन्दगी से बेखबर है आदमी / मृदुला झा

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नेह का वरदान वो ईश्वर दिया।

बेमुरौव्वत बेवफ़ा तो हम नहीं,
चाक-दामन तुमने लेकिन कर दिया।

जब घिरी काली घटा झूले लगे,
दर्द तनहाई ने दिल में भर दिया।

सुरमई थी शाम हम जब थे मिले,
ख़्वाब को जैसे किसी ने पर दिया।

माँगती हो दिल क्या मुझसे ऐ ‘मृदुल’,
मैने, लो उल्फत में अपना सर दिया।