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भालू / एस. मनोज
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कुहू कुहू कय रहल कोयलिया
सजल धजल घरती केर रूप
बाध बोन सभ गमैक रहल अछि
गुनगुन गुनगुन लागै धूप
दिग दिगन्त घरि फूल खिलल अछि
प्रकृतिक सुषमा अपरंपार
ऋतु वसंत मे प्रकृति रानी
कय लैत अछि सोलहो शृंगार
मंद मंद चलि रहल पवन सँ
डोलि रहल अछि गाछक पात
अलसायल अलमस्त जीव आ
चहुँ दिस निखरै नवल प्रभात
धरा धाम सुरभित भ जाय आ
सभहक भेंटै पुनि पुनि प्राण
जीव जगत मुस्काबै सदिखन
प्रीत सुमेलित सकल जहाँन