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जिन्दगी दो चार दिन / मृदुला झा

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प्यार के हकदार दिन।

है सियासत का ये फन,
बन गए व्यापार दिन।

वहशियों के दंश को,
रो रहा बेजार दिन।

ज़िन्दगी की नाव का,
बन गया पतवार दिन।

सच का दामन थामना,
चाहता हर बार दिन।

गुरुजनों के नेह का,
मानता आभार दिन।

प्यार जब रुखसत हुआ,
हो गया दुश्वार दिन।