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तुम्हें खोकर मैंने जाना / कुंवर नारायण

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तुम्हें खोकर मैंने जाना
हमें क्या चाहिए-कितना चाहिए
क्यों चाहिए सम्पूर्ण पृथ्वी ?
जबकि उसका एक कोना बहुत है
देह-बराबर जीवन जीने के लिए
और पूरा आकाश खाली पड़ा है
एक छोटे-से अहं से भरने के लिए ?

दल और कतारें बना कर जूझते सूरमा
क्या जीतना चाहते हैं एक दूसरे को मार कर
जबकि सब कुछ जीता-
हारा जा चुका है
जीवन की अंतिम सरहदों पर ?