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अमृत ढ़ार दे गे मइया शारदे! / जयराम दरवेशपुरी
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सूझे न´ कन्ने जांव
चललूं बड़ थाहि-थाहि
नफरत के तितकी से
जन-जन सब त्राहि-त्राहि
आके सुलगल मन में मइया
दू बूँ अमृत ढ़ार दे
गे गइया शारदे!
गे मइया शारदे!
मानवता के मन मंदिर में
भक्क इँजोरिया कर दे!
दिव्य ज्ञान के जोत से मइया
जगमग जग तू कर दे!
हे हंस वाहिनी, कल्यानी
आ पथ हमर सम्हार दे
गे गइया शारदे!
गे गइया शारदे!
ओझरल मन के तार-तार में
अजगुत तू झंकार दे!
विद्या देवी तू हँ मइया
सुर लय तान सिंगार दे!
हे जग जननी जग कल्याणी
निर्मल ज्ञान संचर दे
गे गइया शारदे!
गे गइया शारदे!