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खोजूँ नित अखिया पसार / जयराम दरवेशपुरी

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मटिया के देउता तर
मनउतिया मनावऽ ही
अँचरा पसार नित
अरज सुनावऽ ही
जोगावऽ देउता मँगिया के लाज
बलग रहे बामनो बयार

पानी से पंड़ोर भोर
दूध से नहावऽ ही
धूप दीप नेस अच्छत
सेनुरा चढ़ावऽ ही
अराधइत सुरूज देवा
मने मन भोर भोर करऽ ही पुकार

अँगना के पिंडिया पर
तुलसी के गछिया
निस दिन संझिया
देखावऽ ही संझउतिया
कान अइंठी जोड़ूँ दुनु हाथ
कि हिरदा से छलके पियार

रतिया के सपना में
सजना के पावऽ ही
मीठ-मीठ बतिया से
हिरदा जुड़ावऽ ही नीन टूटे
मन बदहवास कि
खोजूँ नित अँखिया पसार।