Last modified on 10 जून 2019, at 00:03

असरे आषाढ़ बीतल / जयराम दरवेशपुरी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:03, 10 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मड़रा हइ
घनघोर बदरिया

असरे असाढ़ बीतल
सावन गेल सिसकते
बरस रहल दिन रात अँखिया
चहुँ ओर घुप्प अन्हरिया

सपरल मन के
रोपल सपना
मन मुरझायल
समय न अपना
नफरत के तितकी से घायल
सगरे खेत बधरिया

कब ले रहत
अन्हार इ सगरे
रात तरेगन
से बग बग रे
वरूण देव इन्नर रंग नित्ते
खेलइ नाच बनदरिया

सोंचऽ ही कुछ
उलटे होवे
मन मसोस नित्त

किस्मत टोवे
हहर हहर मन खोज रहल हे
पानी भरल पथरिया।