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फन फइलइले रात हे / जयराम दरवेशपुरी
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लोर से लिख-लिख पाती भेजलूं
छछनल आँख पसार के
कतना तेल जरइलक मन ई
आशा ढ़िबरी बार रे
पूस माघ में घुकरल रहलूं
सुधि में मातल अइंठल रे
फागुन के गदराल जुआनी
टीस देह में पइसल रे
एक्के साजन बिन फागुन ई
सउंसे हमर अन्हार रे
सब सिंगार पटोर हे सूना
फन फइलइले रात हे
भरल अंदेशा के गठरी में
सावन के बरसात हे
कोयल जइसन मन कुहकऽ हे
पपिहा पिऊ पुकारऽ हे
नेह छोह के गईठ जुड़ल
न´ हिरदा हम्मर शीतल हे
गरजऽ हइ दुर्दिन के बादर
दुन्नूं अँखिया तीतल हे
टूट रहल मन के अभिलाषा
चारो ओर अन्हार रे
बड़ भागिन ऊ जेकर पहुअना अगजे दिन घर अइलन
घुप्प अन्हार मन पोर-पोर में सुख के समय समइलन
हम बिरही बइठल रोवऽ ही
साजन भेल फिदार रे।