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उठऽ उठऽ हो किसान / जयराम दरवेशपुरी
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पुरूब के धपल लाली किलऽ हइ सपना अपजान
उठऽ उठऽ हो किसान हो गेल सुनहर बिहान
घोघा से हुलकल नयकी किरिनियाँ
धथपथ जगावे पियवा कमिनियाँ
काहे सूतल हा तू चदरी के तान
आम के बगिया में कोयली के बोली
चहके बंस बिट्टी में चिरइन के टोली
छज्जा चढ़ कउआ सुना देलक गान
फरगज्जा मारकिन के बान्हऽ मुरेठा
बोलवे ले आ गेलथुन मलिकवा के बेटा
उठऽ चलऽ पड़रम मिल जुल खरिहान
जेकरा पर जिनगी के सपरल सपनमाँ
ढेर दिन पर एसों उपजल अगहनमाँ
कल्ह से डंेगइवे चल अंटिया के धान।