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अब न सहब जुलुम जोर / जयराम दरवेशपुरी

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छलकल अँखिया के कोर
हे धानी पोछऽ अँचरवा से लोर

जते हल सपरल तोहर सपनमां
पुर जइतो अबकी
जी के अरमनमां
देखऽ मुसकइत किरिनियाँ ठोर
कट गेलइ दुख भरल
कटकल समइया
काटि कूटि खइबइ
अप्पन कमइया
मुहिया गेलइ देख
वह नयका भोर

करिया अन्हरिया के
मुँह पड़लइ छाला
ललकी ओहरवा में
डोलिया निराला
देखऽ पसर रहल दप्-दप् इंजोर

सुरूज सनेस देखऽ
घर-घर पठइले हे
चीन्हइ ले हक अपन
सबके समझइले हे देखऽ
अब न सहब जुलुम जोर।