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मन भर न´् रोटी खयलूं / जयराम दरवेशपुरी
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नाच बंदरिया नाच रे
सुलगऽ दे खूब आँच रे
तीत लगउ कि मीठ लगउ
हम कहबउ साँचे साँच रे
कुहकि रहल हे
चुहचुह बगिया
मन में दहकइ आग रे
ढेर दिना मटि अइले रहलूं
समय कहऽ हे जाग रे
कचटि रहल हे दुख से धिरजा
लोकतंत्र में सभे तंत्र में
अप्पन मंतर जोड़ देलें
अप्पन स्वारथ में डूबल हें
हम्मर नस-नस तोड़ देलें
आबइवाला कल्हे पुछतउ
आय भर सगम बाँच रे
हाड़ तोड़ के हमें कमइलूं
मन भर न´ रोटी खयलूं
तोर बखरा में एतबड़ गो सुख
हम जिनगी भर दूखं गमइलूं
कुचकुच गड़तउतोर गोड़ में
तोरे लगवल काँट रे।