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बगदल बसंत आज / जयराम दरवेशपुरी

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बगदल बसंत आज
उतरल हे धरती पर
अँगना में अइलइ बिहान
धरती के दोबरइलइ शान

प्रीत के पहड़ियाय उगलइ चान
अन्हरिया के टुटलइ गुमान
बिरहा के मातल तरसल नजरिया में
जियरा में आई गेलइ जान

भोर किरिनियाँ मुसकि मुसकि आवे
आशा के अँचरवा हावा में उड़ावे
चहकल गितिया से चहुँ दिस चहकल
हरियर चुहचुह बगान

गाछ बिरिछ हरल-भरल
हावा संग झूम रहल
भौंरा मस्त-मस्त होय
कलियन के चूम रहल
रहि-रहि पुरवा पेन्हा लगावइ
खेतवा में गँूज रहल गान

कसकल जुआनी के चढ़ल सिंगार
लेके खाढ दुआरी पर हजमा नेयार
पूरतइ गोरिया के सपरल सपनमां
छेड़े गुदगुदावे बला तान।