भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीता की तड़प / सुधा चौरसिया

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:44, 11 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा चौरसिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों देती हो
रावण को गालियाँ
उसने मेरा हरण जरूर किया
लेकिन मेरे शील को
अपमानित नहीं किया

वह कर सकता था
मेरे पूरे वजूद को घायल
मेरी आत्मा को कलंकित
दे सकता था
मेरी रगों में रेंगते साँप का दंश

लेकिन नहीं
उसने समझा था
औरत को
उसकी अहमियत को
उसकी प्रतिष्ठा को
पर राम ने मुझे बनाया
अपनी सम्पत्ति, वस्तु, यश
और अपयश का मुद्दा

फिर मैं कैसे कह सकती हूँ
कि मेरे हृदय में
कोई प्रेम स्फुरण हुआ ही नहीं
उसके लिए...