भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

द्रौपदी की त्रासदी / सुधा चौरसिया

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 11 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा चौरसिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

द्रौपदी चीख नहीं सकी
चिल्ला नहीं सकी
प्रतिवाद नहीं कर सकी
लेकिन जीवन भर
अपने को बाँट-बाँट कर
काट-काट कर, परोसती रही

क्यों, मैं पूछती हूँ क्यों?
क्या यह कुन्ती का आदेश मात्र था?
या उसकी नियति?
नहीं, यह उसकी खुद की
विवेक शून्यता, उसकी भीरुता थी
जो उसको सम्पूर्णतः जीने नहीं दिया
कहीं न कहीं से अपने लिए
अपराधिनी बनी रही

अपराध भावना से व्यथित
उसने अपने दो टुकड़े किये
हृदय को अलग
और शरीर को अलग
ये दो टुकड़े
आज तक कुहक रहे हैं
अपनी सम्पूर्णता के लिए...