Last modified on 12 जून 2019, at 00:00

कल मिलबो विकराल बनल / जयराम दरवेशपुरी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:00, 12 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नया किरिन उगतइ हमरो ले
मन रहतइ खुशहाल बनल
काँटा जइसन चुभला आजे
कल मिलबो विकराल बनल

अकबक जन जीवन में देखऽ
अजबे आल निखार हे
हर जोर जुलुम के धंगचइ ले
अजबे आज उलार हे
सांस-सांस में ज्वाला भड़कल
हम तऽ अब ही व्याल बनल

खून पसेना चूसऽ हा तू
हम तऽ निराहार ही रोटी ले
सिसकऽ ही हमहीं
हम हीं जग सिंगार ही
बड़ दिन सहलूं अब न´ भयवा
हर दम ई हे ख्याल बनल

नकली बाघ तू कागज के हा
फूक से तुरंते उड़ जइबा
चेत गेलूं हें जमल हा अखनी
देखिहा कल उजड़ जइवा
देखऽ दा न´ आ रहलो हे
आँधी सन अंधियाल बनल।