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सुलगावऽ बोरसी के अगिया / जयराम दरवेशपुरी

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अँचरा से झांपऽ बुतरूआ के
शरद भेलो हाथ आउ गोड़
सुलगावऽ बोरसी के अगिया
सेंकऽ गन जा ताबड़-तोड़!

सूखल ताड़के आंठी लइलूं
सुलगत लहलह आग
अँचरा के लुंडा ही बनवे
सेंकम बलइया राजगीर जइतइ
भागत हाथा जोड़

गाँजऽ मत दा कादा-पानी बन जइतो अटपाटी
कान में सप्-सप् हावा लगतो फेन पकड़तो खाटी
तोप-ताप के सुतवऽ हाली लगवऽ अप्पन कोर
गतसिहरी से दलदल काँपे डबकल दुन्नूं नांक
उखबिखाल मन पागल जइसन
शीतलहरी के धाक सहला-सहला
चुप करऽ झट कइले हको अनोर
बिछल पोवार के गदगर गदला
मिल-जुल के सुत रहिहा
घुकरी ले मोर-मार के
मोटरी सन बनि जइहा
हमरो गोड़ के फटल बेअइया
टभ-टभ-टभको जोर।