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नयकी दुनिया लावऽ / जयराम दरवेशपुरी

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लुहचुह बगिया
लगवऽ भइया
सुन्नर फूल खिलावऽ
मेहनत के मोती पर भइया
न´ कोय दाग लगावऽ

नजर उठाके देखऽ भइया
मत आवरू खोवऽ
कलुष भावना मन में पइसल
सहज भाव से धोवऽ
सुर से सुर मिलावऽ सब मिल
एक राग में गावऽ

घुसुर-फुसुर आलस ने छोड़ऽ
छोड़ऽ करिया धंधा
मिहनत के बल आगू बढ़ला
डांट करऽ तनि कंधा
आवेवाला समय के खातिर
नयका राह अपनावऽ

जेकर जोती से जगमग हइ
कोना कोना हरियाली
कउन दुसमन लूट रहल
समाज मुँह खुशियाली
आपस में मत फूटऽ भइया
नयकी दुनिया लावऽ।