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सिसकऽ हई खेतवा बधार / जयराम दरवेशपुरी

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सावन मासे बरसइ मोर अँखिया
धरती धुरिया उड़ान रे
विपत के बोझवा से चंतलइ किसनमां
आफत में पड़ि गेलइ जान रे

धरती पियासल मुँह फार ताकइ
बदरो निठुर भेलइ आज रे
ऊपरा में रजवा इनर संग बरूणो भी
बचबइ नऽ हाय मोर लाज रे

घरो के अनजवा खेतवा में जरलइ
होई गेलइ कोठिया बेअनाज रे
लगन लिखाल मोर बेसाहल खेतवा के
गीतहारी ठोकइ कपार रे

झुरकल हरियर चुह-चुह मंगिया कि
जरल जाहइ सोलहो सिंगार रे
टेढ़की नजरिया से ताकऽ हइ गगनमा कि
सिसकऽ हई खेतिया बधार रे

एक तऽ अदखा ई अँखिया न खोललक
मग्धा नियन सुनसान रे
एकरो घघवा गगनमां में अंटकल
अकबक में हइ परान रे

लगऽ हइ झगड़ऽ गेलइ इनर वरूणा
धकवा में चउपट किसान रे।