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चिट्ठी तुम्हारे नाम / विनय मिश्र

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लौट आई जो लिखी
  चिट्ठी तुम्हारे नाम

  लहरियों ने याद की
  पकड़ी कलाई थी
  खिंच गई तस्वीर
  आंँखों में विदाई की
  आंँख का तारा हुई है
  वह सुनयना शाम

  बोलने से यह लजीला
  मौन घबराए
  एक खालीपन कहांँ तक
  घाव भर जाए
  बंद हैं क्या इस सदी में
  मौसमों के काम

  वह न होकर भी अभी
  इस वास्ते में है
  कोई टूटा पुल अभी तक
  रास्ते में है
  देह सोती है मिला कब
  साँस को आराम ।