कोई नहीं / निकानोर पार्रा / उज्ज्वल भट्टाचार्य
कोई चारा नहीं कि मैं सो सकूँ
कोई पर्दों को हिलाए जा रहा है.
मैं बिस्तर से उठकर जाता हूँ ।
वहाँ कोई नहीं है ।
ज़रूर यह चान्दनी रही होगी ।
मुझे कल सुबह जल्दी उठना है
और मैं सो नहीं पा रहा हूँ :
लगता है, कोई दरवाज़े पर थपकी दे रहा है ।
फिर एकबार उठकर जाता हूँ
और दरवाज़ा खोल देता हूँ :
हवा का झोंका मेरे चेहरे पर थपेड़े मारता है
लेकिन सड़क तो बिल्कुल ख़ाली है ।
मुझे सिर्फ़ चिनार की पाँतें देती हैं
हवा के
छन्द में
आहिस्ता-आहिस्ता
डोलते हुए ।
मुझे अब कुछ देर ज़रूर सोना है.
वाइन की आख़िरी घूंट पी लेता हूं
गिलास अब भी चमक रहा है
बिस्तर की चादर फैला लेता हूं
फिर एकबार घड़ी की ओर देखता हूं
लेकिन जब आंखें बंद करता हूं
किसी औरत की सिसकी सुनाई देती है
प्यार में धोखा देकर जिसे छोड़ दिया गया है.
इस बार मैं उठकर नहीं जाउंगा
सिसकी सुनते-सुनते मैं बेहद थक गया हूं.
सारे शोर अब बंद हैं
मुझे सिर्फ़ समुद्र से लहरों की आवाज़ सुनाई देती है
किसी के पैरों की थाप की तरह
हमारे केबिन की ओर आती हुई
कोई
जो
कभी भी
यहां
नहीं पंहुचता.
अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य