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सफ़ेद पर्दे और गुलदान / तिथि दानी ढोबले

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परियों की कई पोशाकें दिखाई देती हैं दूर से
जिस पर रेत से लौटी लहरों ने की है कशीदाकारी
तेजी से पलटते हैं बचपन में सुनी परीकथाओं के पन्ने
नज़रों के सामने तैरते हैं सतरंगी बुलबुले
सूरज की किरणों पर सवार
निगाहें चली जाती हैं कांच की खिड़की के पार
जो ठहरती है वहां,
जहां सच में बदलती है फंतासी
झालरनुमा गोटेदार, सफ़ेद पर्दों के साथ

और भी नज़दीक जाने पर
दिखता है शान से बैठा हुआ गुलदान
जिसमें भरा है एक मिश्रण
प्रेम से उठायी गई मिट्टी और करुणा से लिया गया जल।
गुलदान में मुस्कुराते हैं गुल,
खुद पर पड़ती नज़रों से
बढ़ती है इनकी शोख़ी और गाढ़ा होता है रंग

यह दृश्य बेहतर कर देता है आंखों की रोशनी
नाक सूंघ लेती है अतीन्द्रिय गंध,
अचेतन से चेतन में प्रवेश करती है मुस्कान
फेफड़ों में भरती है ताज़ा प्रणवायु
दिमाग़ हो जाता है विचारशून्य,
नहीं रह जाता उसे याद
कोई जाति, वर्ग, धर्म, संप्रदाय और वर्ण
नहीं सोचता, कौन है इस संपत्ति का मालिक
उसी क्षण होती है प्रेम और आनंद की अलौकिक जुगलबंदी

इसी क्षण में शामिल होती है मुक्ति
होता है आंतरिक और बाह्य युद्ध स्थानापन्न
यही वो समय है, जिसके इंतज़ार में कटती है जिंदगी,
चलो, निकल पड़ें एक लंबी यात्रा पर
समूची धरती पर लगा दें
सफ़ेद झालरनुमा गोटेदार पर्दे
और हर कोण पर सजा दें गुलदान।