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दर्द का रिश्ता / सुनीता शानू

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तेरा-मेरा रिश्ता
एक अबूझ पहेली सा--
’दर्द का रिश्ता’

हर खुशी में शामिल
होते है
दोस्त सभी
बस
एक तू ही
नहीं होता

एक कोने में बैठा
निर्विकार
सौम्य
अपलक निहारता मुझे
और बाट जोहता कि
मैं
पुकारूँ नाम तेरा...

लेकिन
मैं भूल जाती हूँ
उस एक पल की खुशी में
तेरे सभी उपकार
जो तूने मुझ पर किये थे
और तू भी चुप बैठा
सब देखता है

आखिर कब तक रखेगा
अपने प्रिय से दूरी?