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अनन्त / मुकेश निर्विकार

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ब्रह्माण्ड में, कहते हैं,
सब कुछ अनन्त है-
आकाश अनन्त है,
समय भी अनन्त है
दिशाएँ भी अनन्त हैं
और मनुष्य की बुद्धि की भी,
थाह नहीं पायी है किसी ने

लेकिन, जब इसी मानव-बुद्धि ने
अपने-अपने ईश्वर गढ़े
बनाई अपनी-अपनी आस्थाएँ
तो लगता है वह अनन्त नहीं
बित्ता भर का है
क्योंकि उसके यहाँ-
ईश्वर का मस्जिद में प्रवेश निषेध था,
तो अल्लाह का मंदिर में घुसना माना!