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तन गयीं हैं मुट्ठियाँ आकाश में / ईश्वर करुण

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तन गयी हैं मुट्ठियाँ आकाश में
खोंट आए हैं निकाल विश्वास में !

आज के अस्तित्व को हम रौंदकर
खोजते हैं अस्मिता इतिहास में!

खूं खंजर से हो या की त्रिशूल से
देश मरता है हरेक ही लाश में!

गाने दो बुलबुल को भी कोयले को भी
क्या रखा है इस विरोधभास में !

हों न ‘ईश्वर’ फूल जब कई रंग के
क्या मज़ा तुम ही कहो मधुमास में !