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यात्रा-कथा –उत्तरार्द्ध / रश्मि भारद्वाज
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यात्राओं में उपजती रहीं कविताएँ
सफ़र की थकन और शोर के बीच
पर आँखें बंद कर लो तो फिर कुछ शेष रहता नहीं आसपास
देह से मन तक की यात्रा के लिए एक अदृश्य पुल बनता है
एक अनिश्चित जीवन की तयशुदा यात्राओं के मध्य
यायावर सी भटक सकती है आत्मा
शरीर के लिए तय की गयी हर परिधि से बाहर
मेरे लिए यही इबादत रही
और यही ध्यान