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प्रश्न / भारतेन्दु प्रताप सिंह

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गुलाब की पंखुड़ियों में लिपटी
सुबह की हर ओस,
पेड़ के पत्तों से छन कर आती
पूरनमासी के चांद की हर किरन
तुम्हारे प्रतिबिम्ब मात्र है।
भोर में हवाओं से उठती शरीर की सिहरन,
बसंती फूलों से आती सुगन्ध की मादकता,
कांटो की चुभन-सी कुरेदती तेरी हर याद,
इन सब में मैंने तुम्हारी ही छवि पाया है।
पर-कटे पतंगे की आकुलता और
रेत-सा तपता, वीरान मन,
इन सबके बीच,
थकावट से चूर
तुम्हारे माथे पर आयी पसीने की बूँद
और सघःविकसित रात-रानी की सुगन्ध,
मैं अब भी इनमें कोई फर्क नहीं कर पाता हूँ
बता सकती हो क्यों?
और क्यों?