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दुनिया से अलग / रति सक्सेना

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मैंने बेटियाँ जनी हैं

वो भी पाँच-पाँच

तुम कुछ दंभ से कहा करती थीं

यह जताती हुई कि

कितनी अलग हो दुनिया से


लेकिन आँख बचा के

अपने काल-कवलित बेटों के लिए

रो लेती थीं

यूँ सामान्य-सी बनती कि

आँख में कुछ गिर गया

तुम अलग थीं

संदेह नहीं, अपनी दुनिया से

पर मैं तुम में बेहद साधारण माँ खोजती रही