भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया से अलग / रति सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने बेटियाँ जनी हैं
वो भी पाँच-पाँच
तुम कुछ दंभ से कहा करती थीं
यह जताती हुई कि
कितनी अलग हो दुनिया से

लेकिन आँख बचा के
अपने काल-कवलित बेटों के लिए
रो लेती थीं
यूँ सामान्य-सी बनती कि
आँख में कुछ गिर गया
तुम अलग थीं
संदेह नहीं, अपनी दुनिया से
पर मैं तुम में बेहद साधारण माँ खोजती रही