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कुहरा / मौरिस करेम / अनिल जनविजय

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अपनी असीम गठरी में
कुहरे ने सबकुछ बान्ध लिया
मैदान को, जल भरे गड्ढों को
कुहरे ने गठरी में सम्भाल लिया

बाग का एक-एक फूल
छायापथ पर पड़ी एक-एक पत्ती
कुहरा उठा ले गया साथ अपने
पड़ोसियों के छीन लिए सपने

अब मैं क्या करूँ?
जाऊँ कैसे दूर वहाँ कुहरे के पास
क्यों उठा ले गया वो चिड़ियों को बेचारी
कहाँ ग़ायब हो गईं वो सारी की सारी ? 

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय