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कवि-3 / मरीना स्विताएवा
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क्या करूँ मैं अन्धी और सौतेली सन्तान
इस दुनिया में जहाँ हर कोई होता है चौकन्ना बाप ।
जहाँ शाप होती हैं
इच्छाएँ और दण्डनीय
जहाँ श्लेष्मा कहे जाने पर
अपमानित होते हैं आँसू !
क्या करूँ मैं गानेवालों की पसलियों और पेशे का
तारों के जाल का
आग और साइबेरिया का
तरह-तरह के मापों से भरी इस दुनिया में
क्या करूँ मैं उनकी भारहीनता का ।
क्या करूँ मैं !
मैं इस दुनिया की प्रथम गायक,
इस दुनिया में जहाँ काली से भी काली चीज़
काली नहीं होती,
जहाँ अन्तःप्रेरणा को बचाकर रखा जाता है थर्मस में !
क्या करूँ मैं अपने असीम का
सीमाओं के इस संसार में !
22 अप्रैल 1923
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह