भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यौवन-1 / मरीना स्विताएवा / वरयाम सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:49, 28 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मरीना स्विताएवा |अनुवादक=वरयाम स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ मेरे यौवन, मेरे पराये यौवन !
ओ मेरे बेमेल जूते,
झुकाते हो बीमार पलकें इस भाव से
जैसेकि फाड़ा जा रहा हो कैलेण्डर का कोई पन्ना ।

तुम्हारी कमाई को छुआ भी नहीं
सोच में डूबी कविता ने ।
ओ मेरे यौवन, कहूँगी नहीं पीछे से — 
तरबूज़ सा बोझ रहा तू मेरे लिए ।

रातों में सँवारता रहा मेरे बाल,
रातों में तू तेज़ करता रहा तीर,
बजरी की तरह दबी हुई तुम्हारी उदारता के नीचे
मुझे सहन करने पड़े दुख दूसरों के बदले ।

समय आने से पहले ही तुम्हें मिलेगा राजदण्ड,
हृदय को रोटी-पानी से क्या मतलब !
मेरे यौवन, ओ मेरे सिरफिरे यौवन,
ओ मेरे पत्थर के टुकड़े — मेरे यौवन !

18 अगस्त 1921
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह