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बचाव / वेणु गोपाल

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रुको--

कि कैसे चूम पाएंगे हम

हमारे होंठ कट चुके हैं।


चाकू

उसी के हाथ में है

जिसके मुँह ख़ून लगा है।


झुको--

ज़रूरी है कि हम अपनी

परछाइयों के साथ गड्ड-मड्ड हो जाएँ


अगला वार

पता नहीं कब

और पता नहीं कहाँ होगा?


(रचनाकाल : 4.12.1975)