Last modified on 3 अप्रैल 2020, at 23:34

हैं पवन मन्द चलने लगे / रंजना वर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:34, 3 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=भाव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हैं पवन मंद चलने लगे।
सारे उपवन महकने लगे॥

कोयलें कूकने फिर लगीं
आम पर बौर लगने लगे॥

हमने जब पीर अपनी कही
लोग सुन उसको हँसने लगे॥

बांट लेते खुशी हैं सभी
दर्द मन में सिसकने लगे॥

जब भी आँसू गिरे आँख से
हर किसी को खटकने लगे॥

स्वार्थ ही मात्र आदर्श है
आचरण भी हैं दिखने लगे॥

भूल बैठे हैं ईमान सब
हैं टके सेर बिकने लगे॥