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बरखा में संसार सुहाना लगता है / रंजना वर्मा
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बरखा में संसार सुहाना लगता है।
हरियाली में दिल दीवाना लगता है॥
थम थम कर झरती हैं बूँदे अम्बर से
बादल से उसका याराना लगता है॥
महकी महकी वादी और हवाएँ भी
इनका कुछ सम्बन्ध पुराना लगता है॥
गुनगुन का संगीत सुनातीं गलियों में
भँवरों का भी आना जाना लगता है॥
है झनकार सुहाती दादुर झिल्ली की
मेघों का स्वर सिर्फ़ बहाना लगता है॥
चहकें गौरैया कपोत खंजन मैना
कानों को प्रिय उनका गाना लगता है॥
झाँक रही है तड़िता नभ की खिड़की से
उस का भी है यहीं ठिकाना लगता है॥