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गगन में चाँदनी जब खिलखिलाती है / रंजना वर्मा
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गगन में चाँदनी जब खिलखिलाती है।
हँसी मीठी तुम्हारी याद आती है॥
हैं जब काली घटाएँ घेरतीं नभ को
बरसती बूँद हर मदिरा पिलाती है॥
मिले थे चाँद की भीगी निशा में हम
बिखरती चाँदनी यादें जगाती है॥
उमड़ता प्यार है आकुल हृदय में जब
पहाड़ों को घटा झुक चूम जाती है॥
सितारों से जड़ी चुनरी पहन लेती
निशा फिर चाँद की बिंदी लगाती है॥
कभी भी उपवनों में फूल हैं खिलते
मगन होकर कली खुशबू लुटाती है॥
जिसे थामा हमेशा डगमगाने पर
नहीं तुम आज भी वह लड़खड़ाती है॥