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दुई हरफ ओठहरू / मञ्जुल तथा गीता त्रिपाठी
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दुई हरफ ओठहरू
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रचनाकार | गीता त्रिपाठी, मञ्जुल |
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प्रकाशक | यादव त्रिपाठी |
वर्ष | २०६४ भदौ |
भाषा | नेपाली |
विषय | |
विधा | गीत |
पृष्ठ | |
ISBN | 978-99946-2-895-7 |
विविध | मञ्जुलसँग संयुक्तलेखन |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
आँसु मुस्कान
आँसु
- आज बिहान झिसमिसेमा / गीता त्रिपाठी
- आएछौ नि हतारैमा / गीता त्रिपाठी
- सम्झनाको बरियोले / गीता त्रिपाठी
- बाट्दा बाट्दै फुस्कन्छ / गीता त्रिपाठी
- जमिरहेँ पोखरीमा / गीता त्रिपाठी
’ मुस्कान’ मञ्जुलको पेजमा राखिएको छ ।
नदी - पहाड
पहाड
- चोट खेप्छु / गीता त्रिपाठी
- मलाई हेरी जून-तारा हाँस्छन् / गीता त्रिपाठी
- नदीसँग पहाडको अनन्त छ मेल / गीता त्रिपाठी
- पहाडबाट खस्छ नदी / गीता त्रिपाठी
’ नदी’ मञ्जुलको पेजमा राखिएको छ ।
दाजु - बहिनी
बहिनी
- वैरीको धोका होइन नि दाजै / गीता त्रिपाठी
- बालकैदेखि पछ्याइरहे / गीता त्रिपाठी
- झन् पर पर सर्दैछ दाजै / गीता त्रिपाठी
- गाउँ र सहर / गीता त्रिपाठी
- दियालो अझै सल्केन / गीता त्रिपाठी
’दाजु’ मञ्जुलको पेजमा राखिएको छ ।
उज्यालो-अँध्यारो
अँध्यारो
- म किन यत्ति कुरूप भएँ / गीता त्रिपाठी
- एकैछिन बल्छ दियोको बत्ती / गीता त्रिपाठी
- सलेदो हुँ म डढेरै जान्छु / गीता त्रिपाठी
- लहराजस्ता सपना मेरा / गीता त्रिपाठी
- दुःखका आँधी, पीरका कथा / गीता त्रिपाठी
’ उज्यालो’ मञ्जुलको पेजमा राखिएको छ ।
गाउँ - सहर
सहर
- म किन यत्ति कुरूप भएँ / गीता त्रिपाठी
- मन्दिर, मस्जिद, गुम्बा, चैत्य / गीता त्रिपाठी
- मानिसको जङ्गलबीच / गीता त्रिपाठी
- बेग्लै ठान्छन् मान्छे मलाई / गीता त्रिपाठी
’ गाउँ’ मञ्जुलको पेजमा राखिएको छ ।