भैया जब घर आता है
तब ऐसा होता है ।
चिन्ता करते बाबूजी की
खाँसी नहीं दुहरती
बिना दवा खाये माँ
घर में आना-जाना करती
छोटी बहना जान गई
मन कैसा होता है ।
पिछले भादो में रेहन पर
लगे आम-अमरूद
भैया उन्हें छुड़ाएगा
पाई-पाई सूद
मुनुवा कैसे भूले सब कुछ
पैसा होता है ।
भाभी की पहनी है साड़ी
रंग नहीं छूटे
घर की परिपाटी है
जीते जी कैसे टूटे
टोले भर में बाँटेगी
जी, वैसा होता है ।