यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
मानुष मैं हीं हूँ
इस एकांत घाटी में
यहाँ मैं मनुष्य की
आदिम अनुभूति में
साँस लेता हूँ।
ढूँढकर एक पत्थर उठाकर
एक पत्थर युग का पत्थर उठता हूँ।
कलकल बहती ठंढी नदी के जल को
चुल्लू से पीकर
पानी का प्राचीन स्वाद पाता हूँ।
मैं नदी के किनारे चलते-चलते
इतिहास को याद कर
भूगोल की एक पगडंडी पाता हूँ।
संध्या की पहली तरैया
केवल मैं देखता हूँ।
चारों तरफ़ प्रकृति और प्रकृति की ध्वनियाँ है
यदि मैंने कुछ कहा तो
अपनी भाषा नहीं कहूँगा
मनुष्य ध्वनि कहूँगा।