Last modified on 21 सितम्बर 2008, at 14:47

कोई निगाह भी न फेरेगा / जेम्स फ़ेंटन

सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:47, 21 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=जेम्स फ़ेंटन |संग्रह=जेम्स फ़ेंटन चुनिंदा क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: जेम्स फ़ेंटन  » संग्रह: जेम्स फ़ेंटन चुनिंदा कविताएँ
»  कोई निगाह भी न फेरेगा

दक्षिण के गेट में

बस तुम्हारा इंतज़ार कर रही है

वह तुमको तुम्हारे वंशजों के पास ले जाएगी

जो पहाड़ियों के सामने हैं

दमकता हुआ सुंदर

और संजीदा टुकड़ा तुम्हारा आवास है वहां

क्या तुम शर्माती हो

होना भी चाहिए शर्मीला

यह लगभग एक शादी जैसा ही है

फूल पकड़े हैं जिस तरह

और घूंघट लपेटा हुआ

और ओह ये दुल्हन की सखियां

मुमकिन है तुम इनसे पहले रोज़ तो

दूर ही रहना चाहोगे

लेकिन ये वक़्त गुज़र जाएगा

और दूर नहीं है श्मशान

ये लो आ गया बस का ड्राइवर

उसकी तुम पर नज़र? तक नहीं पड़ी

वह अब भी जीभ तलाश रहा है

दांतों के बीच

देखो उसने तुम्हारी ओर निगाह डालनी भी

मुनासिब नहीं समझी

और दूसरों ने भी नहीं समझी

ये सब गुज़र जाएंगे

सबके सब

कोई फ़टक कर नहीं आएगा पास